मंगलवार, 19 जून 2012


'फिर से उड़ चला'
कमरे के ऊपरी छोर पर दो प्रेमी कबूतर कई दिनों से आशियां बनाने की जुगत में थे.. ऑफिस से आता, तो देखता कि तेज़ हवा की चपेट में उनका घरौंदा टूटकर मेरे बिस्तर पर पड़ा मिलता.. 4-5 दिनों तक यही सिलसिला बदस्तूर ज़ारी रहा.. मैं मूर्ख कुछ कर ही न पाता.. एक रोज़, ध्यान की अवस्था में अंतस से आवाज़ आई दिमाग की बत्ती जलाओ, अपनी अक्ल लगाओ.. जो हो सकता था, हो गया.. उनका घर बस गया.. गज़ब तो तब हुआ, जब रात 3 बजे के गहरे सन्नाटे में किताब के साथ ध्यान में लीन था.. तभी एक आवाज़ अंदर तक उतरती चली गई.. ऊ..ऊ...ऊ...ऊ... आंखें खुली तो उनमें से एक प्रेमी सामने था.. उसकी भाषा तो ऊपर से निकल गई,, मगर भाव दिल में दस्तक दे गया.. वैसे भी सत्य शब्दों में नहीं शून्य में है.. ख़ैर उनका घर बस गया.. दो प्यारे से बच्चे हो गए.. मेरे आसपास उनकी मां ने उन्हें पंख फैलाना सिखाया.. और आख़िरकार उनका पूरा परिवार मुझे मीठी यादें सौंपकर नए आशियां की तलाश में निकल पड़ा.. ईश्वर के हर स्वरूप को नमन...

6 टिप्‍पणियां:

  1. इस मासूम पंछियों को जब हमसे लगाव हो जाता है तभी ये हमारे करीब आकर हमें अपनाते हैं ..
    आजकल मेरे घर में भी बुलबुल के बच्चे अपनी उड़ान भरने को तैयार हैं ... मुझे भी अपनी आँखों से उन्हें बड़ा होता देखो सुन्कुं मिलता है..
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति

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  2. कविता जी आपको मेरी प्रस्तुति पसंद आई.. इसके लिए आपका शुक़्रिया.. दरअसल ख़़ूबसूरती शब्दों की मोहताज़ नहीं.. हम मनुष्यों के पास साहित्य लेखन की कला और क्षमता है. लेकिन ये मासूम और ख़ूबसूरत पक्षी इससे महरूम हैं.. शायद इसीलिए ईश्वर ने हमें इनकी अदाओं को बयां करने का ज़रिया बनाया हो..

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.

    मेरे ब्लॉग पर भी पधारें, आभारी होऊंगा.

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  4. भाई...आज भी वो दो प्रेमी आप की राह ताक रहे...कि कभी ना कभी तो आप आओगे...उनकी बसी दुनिया को देखने...

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  5. भाई जी बिल्कुल.. प्रेम तो शाश्वत है,, दुनिया के सभी बंधनों से परे..

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  6. शुक्ला जी, बहुत-बहुत धन्यवाद..
    मैं आपसे ज़रूर राब्ता क़ायम करूंगा..

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