'फिर से उड़ चला'
कमरे के ऊपरी छोर पर दो प्रेमी ‘कबूतर’ कई दिनों से आशियां बनाने
की जुगत में थे.. ऑफिस से आता, तो देखता कि तेज़ हवा की चपेट में उनका घरौंदा
टूटकर मेरे बिस्तर पर पड़ा मिलता.. 4-5 दिनों तक यही सिलसिला बदस्तूर ज़ारी रहा..
मैं मूर्ख कुछ कर ही न पाता.. एक रोज़, ध्यान की अवस्था में अंतस से आवाज़ आई ‘दिमाग की बत्ती जलाओ, अपनी अक्ल लगाओ’.. जो हो सकता
था, हो गया.. उनका घर बस गया.. गज़ब तो तब हुआ, जब रात 3 बजे के गहरे सन्नाटे में
किताब के साथ ध्यान में लीन था.. तभी एक आवाज़ अंदर तक उतरती चली गई.. ऊ..ऊ...ऊ...ऊ...
आंखें खुली तो उनमें से एक प्रेमी सामने था.. उसकी भाषा तो ऊपर से निकल गई,, मगर
भाव दिल में दस्तक दे गया.. वैसे भी सत्य शब्दों में नहीं शून्य में है.. ख़ैर
उनका घर बस गया.. दो प्यारे से बच्चे हो गए.. मेरे आसपास उनकी मां ने उन्हें पंख
फैलाना सिखाया.. और आख़िरकार उनका पूरा परिवार मुझे मीठी यादें सौंपकर नए आशियां
की तलाश में निकल पड़ा.. ईश्वर के हर स्वरूप को नमन...